स्थिरता में कठिनाई बहुत है,
बहने में आसानी है
रूकना अच्छी बात नहीं है,
पल भर की नादानी है
बहती नदियां, हवा भी बहती
धरती कहाँ कब रूकती है?
आकाश भी देखों स्थिर कहाँ है?
अग्नि धधकती रहती है
इन तत्वों का घोल परंतु,
रूकने पर आमादा है,
थोड़ा थोड़ा बेवकूफ़ है,
ज़िद्दी थोड़ा ज्यादा है!
रूके जो पानी तो होता कीचड़,
हवा रूके तो साँसे दूभर,
जीवन समझो दलदल होगा,
थमे जो अग्नि-धरती-अंबर!
काल निरंतर चलता रहता,
अंधियारा-उजियारा भी,
राह का कंकड़ बनता बाधा
पथिक करे किनारा भी,
रूक जाओ तो क्या होगा?
इसका भान अगर कर लो,
भा जाएगा सफर तुम्हें ये,
होंठो पे मुस्कान मगर भर लो!
#Nkpenning
khubsurat rachna….jindgi chalne ka naam hai.
LikeLike