जब बोलना बहुत मुश्किल लगे,
और चुप रहना नामुमकिन हो,
बस ज़रा हिम्मत करो…तुम बोल दो..!
बोल दो कि बोलने से जख़्मी होगा बस
लहजा तुम्हारा,
बस ये कि तुम्हारी आवाज़ में खराशे उभर आएंगी,
मगर जो तुम चुप रहे…
ये दिल भर जाएगा..आँखे भर आएंगी…
छलनी हो जाएगा सीना…आत्मा तड़प जाएगी..!
बोल दो…बस ज़रा हिम्मत करों…तुम बोल दो…
मौन भले उत्तम है…किंतु कुछ दुष्कर हालातों में,
मोम पिघालना पड़ता है घोर तिमिर कुछ रातों में,
आसमान गिरने लगेगा तो क्या नीचे दब जाओगे??
आप को बचाने को क्या हाथ न सिर पर लाओगे??
कब तक…कब तक आखिर द्वंद करोगे तुम अंतरमन से?
इतना भी तो कठिन नहीं स्वयं को देख पाना दर्पण से…
रक्त की अंतिम बूंद तक रण में हर योद्धा लड़ता है,
कर्म मार्ग से एक पल को नहीं कभी मुड़ता है…
तुम तो मानव राजहंस हो..क्यूं इतना घबराते हो..?
मौन साधना श्रेष्ठ नहीं कर्म..क्यूंकर चुप रह जाते हो..?
समय कठिन है किंतु परीक्षा विपरीत काल ही होती है…
अंधेरोंके डर से भला कभी दिए की रौशनी सोती है..?
हाँ मगर इस अरण्य मार्ग में
संवेदनशीलता मत खोना…
खेमों में सब बँटे हुए है,
तुम उन जैसे मत होना…
मत सुननी कर्कश वाणी को,
ह्रदय वेदना मत लाना…
हो सके तो अपनी बातों से…
इस जग को प्यारे हर्षाना..!
अति सुन्दर 👌👌
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