इक दिल मेहरम-ए-राज़ था…
..कहूँ उसकी क्या मैं दास्तां…
चली ऐसी हवा कि वो बुझ गया..
बन राख़ फिज़ा में बिखर गया..
किताब-ए-ज़िंदगी के सफ़्हों पे वो…
हर्फ़-हर्फ़ उकर गया..
पढ़ो ज़रा..
कहानी का किरदार था,
वो शख़्स जो इसका यार था…
आसमान की चाह में…
या कि रस्म-ओ-राह में…
रास्ता बदल गया…
सुनो मगर..
किस्सा असरदार था,
पर जो कहा..बेकार था..
ज़िंदगी की किताब का…
पन्ना फिर पलट गया..
हवाओं से कुछ लाग थी,
राख़ में बाकी आग थी…
हवा से मिल ये जल उठा…
रंग फिर से इसका खिल उठा..
रौशन चराग़ हो गए…
एहतियात सारे खो गए…
जितने भी अहबाब थे…
सब ख़बर में हो गए..
अब देखो…
पायी थी जिससे ज़िंदगी,
उससे तमाम हो गयी…
हवा जो बनी दोस्त थी..
दुश्मन का नाम हो गयी..
दिल जो एक मिसाल था,
ख्वामखां का हो गया..
सपनों की बज़्म-ए-लाश में..
ये क़त्ल-गाह सा हो गया..
शिकायतें समेट कर,
हिदायते समेट कर..
हिकायतों में रह गया..
इक दिल मेहरम-ए-राज़ था…
#नितिश
umda lekhan….
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Shukriya 🙂
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बहुत सुन्दर 👌👌👍
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बहुत धन्यवाद😊
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Beautiful!
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