सरंचना,संरक्षक, संहार तुम ही
पृथ्वी के पालनहार तुम ही
तुम लोक, धुरी, संसार तुम
दिल में जलती अंगार तुम
तुम प्रेम-सुधा, तुम मोह-रस,
तुम जीवों को आमोद-रस
शुष्क मन में रसधार तुम ही
हो जीवन के भरतार तुम ही
तुम श्लोक,गीत,सब सार तुम
इस जीवन का विस्तार तुम
क्षुब्ध गगन, विक्षुब्ध पवन,
अंतरिक्ष से पाताल-चरण
सबका ढोते हो भार तुम ही
हो सबके ही आधार तुम ही!
मौन का प्रत्युत्तर अनुवाद तुम
बंद नेत्रों का संवाद तुम
नभ की छाया, पृथ्वी का रूप
तुम सा नहीं कोई अनूप
करतल-ध्वनि, अश्रुधार तुम ही,
हो दीनो की हर पुकार तुम ही!
हर श्वास में आता जीवन तुम,
घायल आत्मा को संजीवन तुम,
वसुधा पाती सुधा तुमसे,
तुमसे पाती हर पाती प्रारूप,
हर पल मेरा वंदन तुम ही,
कभी मेरा क्रंदन तुम ही,
है जीवन कदाचित सर्प अगर,
बनना मेरे चंदन तुम ही!
#नितिश
Simply beautiful… Keep it up
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Beautiful words presented in an amazing manner. It was a delight reading it .
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Thank you so much for making time to read and appreciate.
I am glad that it reached you. 🙂
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The pleasure is all mine sir
I got a beautiful opportunity to read you. ☺️
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वाकई में,उम्दाह
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