मेरे दोस्त,मेरे हमराह..तू मेरा यार नहीं है क्या?
छिपा रहा हैं बातों को, ऐतबार नहीं है क्या?
नज़र मिलते ही, नज़रे चुरा रहा है क्यूं?
दिल पे तेरे, तेरा इख़्तियार नहीं है क्या?
“तुम” से उतर आया है, “आप” के तकल्लुफ़ पर तू..
इक दफ़ा ठीक से बता, प्यार नहीं है क्या?
मुझ जैसा मेरे बाद फिर कोई नहीं होगा…
मेरा खोना बता, तेरी हार नहीं है क्या?
मेरा ताबूत नहीं, ये तेरे लिए इक तख़्त है..
घबरा रहा है क्यूं, (इसका) हक़दार नहीं है क्या?
ज़िंदगी बिन तेरे ज़िंदगी नहीं लगती..”नितिश”..
जा रहा है क्यूं, वफ़ादार नहीं है क्या?
ग़ज़ब लिखा है।
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शुक्रिया भाई 🙂
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