मिट्टी हूँ, पर रहता हूँ मैं फूलों के साथ…
ये खिलें तो खिलते हैं मेरे भी जज़्बात..!
ठीक समय पर आ गई, दिल को दिल की याद…
फसल होती बर्बाद जो ना होती बरसात..!
कहने को सब कह रहे अपनी अपनी बात…
मै रहूँ चुप,तू सुने..तब है कोई बात..!
बढ़ते बढ़ते बढ़ गए यूं जीवन के ठाठ,
आँख हुई जो बंद तो खाली दोनो हाथ..!
जीवन की चाकी पे है, समय दुपहिया पाट..
श्वास-श्वास पिस जाएंगे, ये दिन और ये रात..!
😊👏👏👏
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Well NITISH
Bahut accha likha hai apne
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