दिल पूरा भीग चुका था…बारिश जितनी बाहर थी उतनी ही अंदर भी.
पानी भरने लगा था…emotions एक दूसरे से उलझने लगें…
इतनी बारिश भी अच्छी नहीं होती…इतना भीगना भी सही नही…
कोई ना कोई बात यूं तो वैसे भी याद आ जाती हैं…पर आज सभी याद इसी रास्ते आ रहीं थी…
नहीं आना चाहिए था…पानी भरा हुआ हैं…
नहीं मानी यादे…
लंबा..बहुत लंबा जाम लग गया…
इस जाम में कब शाम से रात हुई…खबर ना हुई..
रात इक दफा फिर बहुत महसूस हुई…
दिल में आए इस बाढ़ और जाम के पीछे मन और दिमाग में खुब लड़ाई हुई…दोनो की लड़ाई में emotions पिसते रहें..
दिमाग ने आखिर हुकुम जारी कर दिया….और यादें दिल की तरफ ना आए…जाम पहले ही बहुत हैं…
.
.
धीरे-धीरे
वक्त की धूप में पानी उतर गया…रास्ता खुल गया…यादें जो कब से फँसी हुई थी…चली गई…
दिमाग ने मन को और यादें लाने की मंजूरी दे दी…
यादें अभी…इस “दिल” के रास्ते जाने से घबरा रहीं हैं…
यादों ने आपस में देर तक कल के किस्से का जिक्र किया…
और फिर चल दी…उसी दिल के रास्तें…
.
.
.
.
एक गुड़गाँव इस दिल में भी हैं…!